*अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर सेमिनार को संबोधित करते कुलपति*
दरभंगा ::-कविता के लिए बहुत प्रयास नहीं करना पड़ता है। कविता, गीत , शायरी आदि स्वयं उत्पन्न हो जाती हैं। गीत एवं कविताएं पीड़ा, वियोग एवं खुशी होने पर मुख से सहसा निकल पड़ता है। जब खुशियां एवं अनुभव पराकाष्ठा पर होती हैं तो विवेक जागृत होता है।
हम देखते हैं की खुशी एवं दर्द दोनों में सामान्यतया कोई भी उक्ति मातृभाषा में ही उभरती है । उक्त बातें आज ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दूरस्थ शिक्षा निदेशालय द्वारा आयोजित 'अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस' के अवसर पर ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो सुरेंद्र प्रताप सिंह ने कही। उन्होंने प्रो अशोक कुमार मेहता निदेशक दूरस्थ शिक्षा निदेशालय की सराहना करते हुए कहा कि बहुभाषाओं के विद्वानों द्वारा कवि गोष्ठी का आयोजन कराकर अद्भुत संगम का प्रर्दशन किया है। सभी विद्वान विश्वविद्यालय के शिक्षक एवं पदाधिकारी ही हैं कोई पेशेवर कलाकार नहीं। इनकी अद्भुत कलाओं को सुनने वाले श्रोता भी अद्भुत हैं जिन्होंने शान्ति से बैठकर आनन्द लिया है। कविगोष्ठी के आरंभ में 'मातृभाषा में शिक्षा' विषय पर व्याख्यान देते हुए हिन्दी के वरीय प्राचार्य प्रो चंद्र भानु प्रसाद सिंह ने कहा कि बहुभाषिकता एवं वहुसांस्कृतिकता के संरक्षण और संवर्धन के लिए अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 21 फरवरी 1952 को मानी जाती है ,जब तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान और अभी के बंगला देश में उर्दू की जगह बंगला भाषा लागू करने हेतु हुए आंदोलन में लोग शहीद हुए थे । यूनेस्को ने 1999 में इस तिथि को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित किया। मातृभाषा में सिद्धांतों की ग्राह्यता सबसे अधिक होती है । बहुत सारे देशों में लोग अपनी मातृभाषा में सारे काम काज करते हैं। भारत में भी यह आवश्यक है ।अब तक की सारी शिक्षा नीतियों में मातृभाषा पर जोर दी गई है , लेकिन व्यवहारत: इसे धरातल पर नहीं उतार पाए हैं ।इस तरह का आयोजन सजगता प्रदान करती है। संस्कृत भाषा में डा संजीत कुमार झा एवं डा जयशंकर झा , हिंदी में डा अमरकांत कुंवर एवं डा विभा कुमारी, उर्दू में डा मुश्ताक अहमद एवं प्रो अफताब अशरफ तथा मैथिली में डा सत्येंद्र कुमार झा एवं प्रो अशोक कुमार मेहता ने अपनी- अपनी मातृभाषा में रचित रचनाओं को सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। कुलसचिव डॉ मुश्ताक अहमद ने कोरोना एवं लाकडाउन अवधि में रचित अपनी रचना "आईना हैरान है " की एक कविता जिसमें भारतीय संस्कृति की प्रत्येक विधाओं के विशेषज्ञों का वर्णन है को सुनाकर तालियां बटोर ली । कार्यक्रम का संचालन दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो अशोक कुमार मेहता एवं धन्यवाद ज्ञापन सहायक निदेशक डा अखिलेश कुमार मिश्रा ने किया।