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दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन कुलसचिव ने की

 दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन कुलसचिव ने की



दरभंगाि::-ललित नरायण मिथिला विश्वविद्यालय संगीत एवं नाट्य विभाग द्वारा आयोजित द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी "लोक के विविध रंग " के दूसरे दिन प्रथम सत्र का आरम्भ दरभंगा निवासी श्री बालेश्वर राम द्वारा शहनाई वादन और प्रसिद्ध गुलाब बाइ थिएटर  के नक्कारा वादक श्री देवकी राम के नक्कारा से आरम्भ हुआ।देवकी राम,बालेश्वर राम,शहनाई व नक्कारा पर बोतल, झाल और गिलास स्वयं लगाकर वाद्य को एक नया रूप दिया।देवकी राम जी की यह अपनी शोध परक सोच है।बहुत सुंदर शहनाई के साथ नक्कारा की संगत प्रस्तुति रही।लोकसंगीत का खांटी उदाहरण प्रस्तुत किया।

 द्वितीय  दिवस के द्वितीय सत्र मेंपंडित राम दयाल शर्मा नौटंकी के ज्ञाता ने नौटंकी के संदर्भ में व्यापक व्याख्या की जिसे उन्होंने गायन के माध्यम से सोदाहरण प्रस्तुत किया।दोहा,चौबोला आदि मौटंकी के विशेष छंद है।इसे अनेक प्रकार से गाया जाता है।कोरोना के ऊपर अपने बनाये गीत को भी इस विधा को प्रस्तुत है।--//इस कोरोना ने सुनी कर दी हमारी राते.... कोरोना को भगाएंगे वैक्सीन लगवाएंगे फिर बहार को मंच पर लाएंगे......जैसी पंक्तियां गीत की थी।

साथ ही अपने अनुभवों को साझा किया।53 साल से आप आकाशवाणी में गा रहे हैं।

    तृतीय सत्र में पद्मश्री रामचंद्र मांझी एवं उनकी टीम  की प्रस्तुति हुई। बिदेसिया के रचयिता भिखारी ठाकुर के साथ कार्य करने वाले वयोवृद्ध पद्मश्री रामचंद्र माझी जी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं।उनका परिचय स्वयं उनका व्यक्तित्व है।भिखारी ठाकुर रंग मंडल के नाम से अपना ग्रुप है।भिखारी ठाकुर के बिदेसिया नाच व गान को जीवंत कर दिया मंच पर।हास्य व मनोविनोद के माध्यम से लोंगो को अपनी ओर खूब आकर्षित किया।बिदेसिया किस प्रकार अपनी नवब्याहता पत्नी को छोड़कर कलकत्ता चला जाता है,और पत्नी किस प्रकार उसे जाने से रोकती है इसका बड़ा सूंदर संवाद के माध्यम से प्रस्तुति दी।बेटी बेचवा नाटक को गाने के माध्यम से समझाया।उन्होंने बताया कि भिखारी ठाकुर स्वयं पहले बिदेसिया थे।रुपिया गिनाई हमें पगहा धरई देल... जैसे मार्मिक गीत को भावपूर्ण ढंग से रखा।बिदेसिया की पत्नी का चरित्र निभाते हुए अनेक प्रसंगों को बताया।

    चतुर्थ सत्र में मिथिला चित्रकला की कलाकार श्रीमती आशा झा एवं सिक्की कला के कलाकार श्री राजेश कुमार द्वारा  दोनों दिन प्रदर्शनी की जानकारी दी गई। इस सत्र में मधुबनी चित्रकला की प्रसिद्ध कलाकार पद्मश्री दुलारी देवी भी उपस्थित  रहीं।

 अन्तिम तकनीकी सत्र में पटना से पधारीं डा रीना सहाय ने लोक शैली की अनेक  सुन्दर  रचनाओं को सुनाते हुए उसकी सोदाहरण-व्याख्यान दिया।उन्होंने बताया कि किस प्रकार लोक संगीत की विधाएं उपशास्त्रीय व शास्त्रीय संगीत में स्थान पाती हैं।विभिन्न रागों के गायन के माध्यम से उन्होंने अपनी बात रखी।इस सत्र में ही जौनपुर  से पधारीं डा ज्योति सिन्हा ने परिवार-समाज में  सामान्य शिष्टाचार की प्रचलित लोक-रचनाओं को गाकर सुनाया और उसकी व्याख्या भी की।उन्होंने बताया कि लोकगीत केवल लोक के गीत नही हैं, बल्कि ये हमारे पुरखे हैं जो हमारी उंगली पकड़कर आगे बढ़ना सिखाते हैं।

    इस द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी"लोक के विविध रंग " के समापन सत्र  के विशिष्ट  अतिथि के रूप में ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के   कुलसचिव डा मुश्ताक अहमद उपस्थित थे।अपने उद्बोधन में उन्होंने बताया कि मुस्लिम गीतों से उन्होंने 1700 नए शब्दो की खोज की।कामरूप में महिलाओं द्वारा खेती करते समय गाये जाने वाले गीतों के पीछे छिपे भौगोलिक तथ्य को समझना होगा।हमे यदि भारत की सच्ची तस्वीर देखनी है तो लोकगीतो के विविध रंगों को देखना होगा।इस सत्र में भारतीय अध्ययन केंद्र बी एच यू से पधारे डॉ अमित कुमार पांडेय ने बताया कि हमारी वेदिक ज्ञान की परंपरा धीरे धीरे कमजोर पड़ती जा रही है।आज की नई पीढ़ी अनेक लोक में बोली जाने वाले शब्दों से अनभिज्ञ होती जा रही है।हमें अपनी परंपरा को बचाना हैं, लोकसंस्कृति को बचाना है, लोक को बचाना है। इसके बाद विभागाध्यक्ष डा ममता रानी ठाकुर ने इस आयोजन से जुड़े 

अपने अनुभवों को साझा किया ।वाह्य विशेषज्ञों, प्रतिभागियों,छात्र-छात्राओं के अद्भुत  परिश्रम का उल्लेख  किया। संकायाध्यक्ष प्रो पुष्पम नारायण ने संगोष्ठी के विशेषज्ञों द्वारा व्याख्यान की चर्चा  करते हुए इसकी उपयोगिता को रेखांकित  किया। अन्त में , द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी की संयोजक प्रो लावण्य कीर्ति सिंह 'काव्या' ने सम्पूर्ण संगोष्ठी की रिपोर्ट  को प्रस्तुत करते हुए  सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।

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